Thursday, January 03, 2013

हाँ हमें कुछ शर्म करना चाहिये .......


2 comments:

  1. शर्म से मरने के दिन गए
    दम भरने के दिन आ गए

    ReplyDelete


  2. दर्द ही है ज़ख़्म की संवेदना
    क्यों भला इससे उभरना चाहिए

    वाह ! वाऽह…! वाऽहऽऽ…!
    बहुत अच्छा शे'र...

    आदरणीय अमितेष जी
    बहुत अच्छी रचनाएं हैं आपकी
    पूरे मन से बधाई !

    आपकी बहुत सारी ग़ज़लें अभी देखी हैं...
    आनंद आ गया ।

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...

    ♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete