एक दरख्त, ये ब्लोग है मेरी गज़लो का जिसके जरीये मैं आप तक अपनी गज़ले पहुचाना चाहता हुँ, उम्मीद करता हुँ, आप सभी इसे पसंद करेगें................
शर्म से मरने के दिन गएदम भरने के दिन आ गए
दर्द ही है ज़ख़्म की संवेदनाक्यों भला इससे उभरना चाहिए वाह ! वाऽह…! वाऽहऽऽ…!बहुत अच्छा शे'र...आदरणीय अमितेष जी बहुत अच्छी रचनाएं हैं आपकी पूरे मन से बधाई ! आपकी बहुत सारी ग़ज़लें अभी देखी हैं...आनंद आ गया ।❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥ -राजेन्द्र स्वर्णकार
शर्म से मरने के दिन गए
ReplyDeleteदम भरने के दिन आ गए
दर्द ही है ज़ख़्म की संवेदना
क्यों भला इससे उभरना चाहिए
वाह ! वाऽह…! वाऽहऽऽ…!
बहुत अच्छा शे'र...
आदरणीय अमितेष जी
बहुत अच्छी रचनाएं हैं आपकी
पूरे मन से बधाई !
आपकी बहुत सारी ग़ज़लें अभी देखी हैं...
आनंद आ गया ।
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार