Friday, April 08, 2011

उगंलीयां सब पर उठातें रहें है हम.......


24 comments:

  1. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

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  2. दृष्टि का प्रकाश सबसे अच्छा disinfectant है ।
    क्योंकि इसमें चीजें स्पष्ट झलकती हैं ।

    भ्रष्टाचार खत्म करने का भी सबसे अच्छा उपाय पारदर्शिता ही है ।
    जिसके लिये श्री अण्णा हज़ारे आदि आमरण अनशन पर बैठे हैं ।
    हम सब भी उनका सहयोग करें ।

    बहुत ख़ूब अमितेष, हमारे इस तरह के छोटे छोटे प्रयास ही आदरणीय अण्णा जी को संबल प्रदान करेंगे ।

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  3. Very Nice Amitesh, we need such Ghazals to wake up now...:-)

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  4. सच्चाई को कहती अच्छी गज़ल ..

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  5. बहुत सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति..आज इसी ज़ज्बे के ज़रूरत है.

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  6. kya baat hai , sahi , ami goig good , keep it up buddy

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  7. Wah Saheb ...........Aap mashal jalae rakho andhera zaroor door ho jaega
    dinesh k. b.

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  8. bahut accha tarika hai samarthan karne ka....

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  9. बहुत सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति..आज इसी ज़ज्बे के ज़रूरत है.

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  10. संवेदनशील भाव..... प्रभावित करती हैं यथार्थ परक पंक्तियाँ .....

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  11. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 12 - 04 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  12. बहुत सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति.

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  13. उंगलियाँ सब पर उठाते रहें हम
    आईने से चेहरा छुपाते रहें हम !
    दुनिया की यही सच्चाई है !
    सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति !

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  14. behtareen gajlo ka rasaswadan hua aapke blog par, follow karna chahunga

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  15. एकदम सामयिक , बेहद तीखा, यह नज़र बरकरार रहे....
    सादर...

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  16. अजीम भाई, आपके ब्‍लॉग पर पहली बार आया हूं। बहुत प्‍यारा लिखते हैं आप। और हां,आपके ब्‍लॉग का टेम्‍पलेट भी बहुत प्‍यारा है।

    ............
    ब्‍लॉगिंग को प्रोत्‍साहन चाहिए?
    लिंग से पत्‍थर उठाने का हठयोग।

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  17. एक एक पंक्ति अपने भाव की साक्षी है..
    सुन्दर और यथार्थ रचना..!!

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  18. This comment has been removed by the author.

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  19. बहुत खूब !...... हरेक शेर लाज़वाब..

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