मैं जब भी ठोकरें खाता हुँ नया मुकाम मिलता है
तजुर्बे का चहेरा बनाकर भगवान मिलता है
तसल्लि देती हैं पुरानी कहावते अब तो
सब्र का हर एक को ईनाम मिलता है
सियासत ने तो कर दिये, बेकारो के भी तुकढे
इन में भी अब हिन्दु , मुसलमान मिलता है
पडलिख कर कारखानें भी तो जा नही सकते
यहाँ भी बस मजदुरों को ही काम मिलता है
बडे अरमानो से भेजा था वालिद सहाब ने दिल्ली
देखते है कब तलक एहतराम मिलता है
-अमि'अजीम'
सियासत ने तो कर दिये, बेकारो के भी तुकढे
ReplyDeleteइन में भी अब हिन्दु , मुसलमान मिलता है
बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर सार्थक और सटीक..
वाह बहुत सुन्दर ख्याल हैं।
ReplyDeletewah............... yaar simply wahhhhhhhhh.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
...अच्छा ख़याल...सार्थक।
ReplyDeletebehtreen gajhal - pramod
ReplyDeleteबढ़िया -आगे बढ़ते रहे
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