Friday, February 04, 2011

वो भी गज़ब रंग बदलनें लगा है............


नहीं जानता था कि यूं घात होगी
मेरी जिन्दगी मुझको खैरात होगी

न अल्फाज अपने न अपनी ”जुबां है
भला ऐसे लोगों से क्या बात होगी

ये सूरज नहीं फैसला हम करेंगे
कहाँ दिन रहेगा कहाँ रात होगी

सियासत, सियासत, सियासत, सियासत
सियासत से निकलो तो फिर बात होगी

हमें क़त्ल होना है हम क़त्ल होंगे
उन्हें दान देना है खैरात होगी

मजूरांे को बेगार करनी पड़ेगी
किसानों के हक़ में न बरसात होगी

हमारा नमस्कार कहना उसे तुम
अगर जि़न्दगी से मुलाकात होगी

सियासत की शतरंज ‘रौशन’ भुलावा
सियासत से निकलो तो फिर बात होगी
सियासत पर और क्या कहें रोशन लाल 'रौशन' जी ने सबकुछ तो बोल दिया..

6 comments:

  1. siyasat ka rang aisa hi hota hai ami ji...

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  2. गिरगिट की तरह रंग बदलने लगा है,
    वक्त के मुताबिक ढलने लगा है

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  3. sir ye poem to bahot achi lagi sir

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