सदियों से मेरे साथ चलती आईं
मेरी असफलताएं
अंधकार के वर्तुल सी मेरी गहन उदासी
बार-बार जुड़ते
और टूटकर बिखरते मेरे स्वप्न
साहस की सारी आभा लीलतीं
मेरी सुबहें, मेरी शामें
अब क्या मतलब है इन सबका……
ऐसे आई हो तुम
जैसे सागर की अनन्त लहरों पर सवार
तटों तक पहुँचती है हवा
जैसे गहन वन में चलते-चलते
दिख जाए कोई ताल
सदियों से सूखे दरख्त पर
आ जायें फिर से पत्ते
पतझर से ऊबे पलाश में
जैसे आता है वसंत
फूल बनकर
ऐसे आई हो तुम
मेरे जीवन में
बेटी बनकर
आओ
तुम्हारा स्वागत है।
मुकेश जी बेटी के महत्तव को भलि भांती समझते है..
साथ ही मेरी गज़ल भी यही कहना चाहती है...
मेरी असफलताएं
अंधकार के वर्तुल सी मेरी गहन उदासी
बार-बार जुड़ते
और टूटकर बिखरते मेरे स्वप्न
साहस की सारी आभा लीलतीं
मेरी सुबहें, मेरी शामें
अब क्या मतलब है इन सबका……
ऐसे आई हो तुम
जैसे सागर की अनन्त लहरों पर सवार
तटों तक पहुँचती है हवा
जैसे गहन वन में चलते-चलते
दिख जाए कोई ताल
सदियों से सूखे दरख्त पर
आ जायें फिर से पत्ते
पतझर से ऊबे पलाश में
जैसे आता है वसंत
फूल बनकर
ऐसे आई हो तुम
मेरे जीवन में
बेटी बनकर
आओ
तुम्हारा स्वागत है।
मुकेश जी बेटी के महत्तव को भलि भांती समझते है..
साथ ही मेरी गज़ल भी यही कहना चाहती है...
अमितेश जी,
ReplyDeleteये बेटियां ही हैं जो उम्रभर रौनके लगाए रखती हैं,
बेटे अब पराये हो गए, बेटी पराई होके भी ख्याल रखती हैं.
nice lines.....
ReplyDeletesahi kaha sharma sir ne ....betiya hoti hi aisi hai...swt doll
ReplyDeletethank u all
ReplyDeleteसहज, सटीक एवं प्रभावशाली लेखन के लिए बधाई!
ReplyDeleteकृपया बसंत पर एक दोहा पढ़िए......
==============================
शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
really mai to fan ho gaya keep it up
ReplyDelete