बिना बेटीयों के संसार सूना ही रहेगा, उनके भी कुछ सपने है, हमे चाहिये की सपनो को पूरा करने मे हम उनकी मदद करे, अपनी गज़ल के जरिये मैंने यही कहने की कोशिश की है, शायद दर्द शुजालपुरी की ग़ज़ल भी यही बताती है..सूरज की रूह, चांद का चेहरा हैं बेटियां !
जुगनू हैं, तितलीयां हैं, कलेजा हैं बेटियां !!
बालिग ना हुई और नसीबा तो देखिए !
दस-ग्यारह बरस की कई बेवा हैं बेटियां !!
बेटे तो बीबीयों को अपनी लेके चल दिए !
बूढों की लाठियां और कांधा हैं बेटियां !!
फुरसत मिले तो इनको ज़रा पढ़ भी लीजिए !
कुरान, बाईबल और गीता हैं बेटियां !!
नन्ही कली ओ बादे-सबा 'दर्द' की गज़ल !
क्या-क्या बताऊं आपको क्या-क्या हैं बेटियां !!
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