Friday, February 24, 2012

उफ़ वों हमको मिले भी नहीं....


15 comments:

  1. तमाम बातें कह भी दी और कुछ न कहा
    अल्फाजो का दर्द हिचकियों की जुबान
    कुछ और ठहरते तो सायद कह भी देते
    वो ठहरे तो भी कहने को कुछ न रहा !!!!

    क्या कहा!! क्या सुना!!
    कहने-सुनने को अब कुछ न रहा @@@#@#

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    1. thanks ....
      ठहरना थोड़ा मुश्किल था जनाव ......

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  2. अच्छी गज़ल कही है अज़ीम साहब ....बहुत-बहुत मुबारक हो ! २६ फरवरी दिन रविवार से www.openbooksonline.com पर होने वाले तरही मुशायरे में आप सादर आमंत्रित हैं !

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  3. बहुत सुंदर गज़ल...

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  4. उफ़्फ़ ...क्या गजब की गजल है ...

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  5. बहुत बढ़िया भाई....

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  6. uf ye gazab hai likha
    uf ye pahle pdha kyo nahi
    behtarin rachana

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  7. ये आँसू इतनी आसानी से नहीं ढलते|
    बढ़िया गजल

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  8. वाह!!!!!!!!!!!!!!

    कमाल की गज़ल....................
    बेहद खूबसूरत ब्लॉग....................

    पहली नज़र में भा गया....
    अनु

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  9. बहुत से मिसरे बज़्न में नहीं हैं । मिले और गिले का काफिया चले और ढ़ले सही नहीं है । ना का बज़न 1 होता है आपने 2 लिया है ।- शरद तैलंग

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