Tuesday, February 15, 2011

तुम्हें अपना बना लिया हैं आज..........

वो माथे का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे
बचपन की ग़ज़ल ही मेरी महबूब रही है


4 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  2. 'अमी' तुमने,
    महक गुलाब की चुरा के खुद में बसाली
    चाँद की चाँदनी नज़्म में उतारली
    भौरे अब तेरे इर्दगिर्द मंडराया करेंगे
    चांदनी नग्मे बज्म में छिटकाया करेंगे.

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  3. वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...

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