Friday, March 04, 2011

अपने औदें पर इतना अक़ड़ता क्यूं हैं...........


अपने औदें पर इतना अक़ड़ता क्यूं हैं
तू बात बात पर यूं बिगड़ता क्यूं हैं

क्या संसद का पानी पी आया हैं
तू बार बार यूं रंग बदलता क्यूं हैं

लिबास तो बड़ा ही सफ़्फ़ाख है तेरा
फ़िर आईने से इतना डरता क्यूं हैं

फ़ट पड़ेगा गुस्सा आवाम का एक दिन
गुनाहों से अपना घड़ा भरता क्यूं हैं

'अमि' का देश है ये कोइ थाली तो नही
खाता है इसमें, तो छेद करता क्यूं हैं
                                                          - अमि'अज़ीम'

7 comments:

  1. Good One Yaar.
    I also want write this type of shayari, but unable to do the same, How you can?
    give me some tips...

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  2. AMI AZIM BHAI AAP KE YE BELAG SHAERANA TABSARE HAMAARE NETA AUR AWAM DUNUN KI AANKHEN KHOLNE WAALE HAIN. BAHUT KHUB

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  3. good apne to politics ki sahi image bata di

    really nice

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  4. अमि जी, बहुत उम्दा ख्याल और अंदाज,

    इस दरख्त की टहनियां फलाये जाओ तुम,
    हर रोज़ उन पे नए गुल खिलाये जाओ तुम.
    ख़याल तेरे एक दिन खिलायेंगे नया रंग,
    बेईमान राजनेताओं में ये मचा देंगे हुडदंग.

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  5. HOW SWETT POEM

    VERY GOOD PLEASE KEEP IT UP AND CONTINUE......

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  6. wah kya baat hai...ami sahab...sahi jagah war kiya hai..

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  7. सशक्‍त अभि‍व्‍यक्‍ति‍...

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